पहला सुन्दर लोक है स्वस्थ शरीर ----नियम संयम ही बीमारियों से बचाव है


पहला सुन्दर लोक है स्वस्थ शरीर


|| तारों की छाँव में उठो करो परमब्रह्म का ध्यान। इसको कहते हैं ब्रह्म किरणों में स्नान
||  आत्मा है अविनासी करो ऐसा चिन्तन | मन को हमेशा रखो अपने शान्त और प्रसन्न
 फुलसन्दे वाले बाबा कहते रखो शरीर का ध्यान इस तन के तीरथ में करते देवता स्नान ॥

पहला सुन्दर लोक है स्वस्थ शरीर

 सतपुरूष बाबा फुलसन्दे वालों के चरणों में उनके शिष्यगण जब नमन वंदन करके बैठ गये तब एक शिष्य ने कहा- प्रभु ! हम लोग
अधिकतर किसी ना किसी बीमारी से ग्रसित रहते हैं आप आज हमें स्वास्थ के बारे में बताइये
जिससे हम निरोग रहकर उस परमब्रह्म की आराधना और संसार में उपकार के कार्य कर सकें ।
तब सतपुरूष ने कहा तुम लोगों ने बहुत ही उत्तम विषय को आज प्रस्तुत किया है ।
हम देखते हैं कि हर एक व्यक्ति किसी ना किसी बीमारी से पीड़ित है ।
वेद में तीन लोक कहे गये हैं इस शरीर को पहला लोक कहा गया है इसे स्वस्थ रखना हमारा सबसे
पहला कर्तव्य है । शरीर को बीमार बनाके रखना अपराध या पाप कहा गया है ।
दूसरा लोक है मन इसे शान्त प्रसन्न और ईश्वर में लगाए रखना जरूरी है ।
मन को अशान्त चिड़चिड़ा बनाकर रखना मलीन विचार राग द्वेष से इसे पीड़ित रखना जीवन के प्रति
अन्याय है । यदि मन शान्त और प्रसन्न है तो मनुष्य बीमार पड़ेगा ही नहीं ।
तीसरा लोक है आत्मा यह ईश्वर आराधना और पुण्य कर्मो से स्वस्थ और प्रकाशित होती है ।
पाप करम करने से संयम न रखने से ब्रह्मचर्य का पालन न करने से, परोपकार न करने से,
परमब्रह्म का ध्यान सुमरन न करने से, धर्मग्रन्थ और गुरू बचनो का रोज चिन्तन मनन न करने से
आत्मा मलीन और बीमार और तेजहीन हो जाती है । इन तीन लोको में हमारा निवास है,
आज हम शरीर और मन के स्वास्थ की बात कर रहे हैं,
हमारे वैदिक ऋषि आचार्य अथर्व वेद में कहते हैं -त्वमगदश्चर। तू निरोग होकर विचरण कर ।
स्वक्षेत्रे अनमीवा विराज । तू अपने शरीर में निरोग रहता हुआ शोभायमान हो ।
हिताशी स्यन्मिताशी स्यात्काल भोजी जितेन्द्रियः। हितकर पदार्थों का सेवन कर | कम मात्रा में खा ।
ब्रह्मचर्य का पालन कर जल्दी रात्री में शयन कर प्रातःसूर्य उदय से पहले ही ऊषा काल में जाग
ब्रह्म चिन्तन कर, प्राणायाम कर, प्रतिदिन हवन यज्ञ कर वातावरण का शोधन कर |
गाय के घृत से किया गया यज्ञ रोगों के सभी कीटाणुओं को नष्ट कर देता है ।
घर में गाय पालो गाय का दूध पियो ये अमृत के समान है | तू देवता जैसा बन ।
ये है आदर्श जीवन, नित्य देवपुरूष ऋषियों जैसे पुरूषों का संग कर ।
अपनी संतानो को उच्च और उत्तम संस्कार दो ये हम भारतीयों का आदर्श जीवन है ।
अतः बीमार पड़कर दवा फांकते रहें या डाक्टर और वैद्यों के चक्कर काटते रहें उससे
अच्छा है कि स्वास्थ के उन नियमों का पालन करें जो हमें निरोग रखते हैं बीमार पड़ने ही नहीं देते ।
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