आहार निद्रा ब्रह्मचर्य स्वास्थके तीन स्तम्भ |
इनको उत्तमरखो स्वास्थरहे सदा उत्तम||
शरीरं खलु धर्म साधनम् शरीर ही धर्म का साधन ।
शरीर स्वस्थ नहीं तो होवे नहीं धरम करम॥
फुलसन्दे वाले बाबा कहते शरीर परमात्मा का मंदिर।
इसके भीतर जोत जले ठीक से रखो ये मंदिर।
जब रोग करें बेचैन
सतपुरुष बाबा फुलसन्दे वाले कहते हैं-
परमेश्वर का सुमरन सबसे बड़ी दवा है ।
वात पित्त जब बढ़े पहुचावें अति कष्ट ।
सोंठ आवंला दाख संग खावे पीड़ा नष्ट ।।
खांसी जब भी करे तुमको अति बेचैन ।
सिकी हींग व लौंग से मिले सहज ही चैन।।
रोज तुलसी बीज को पान संग जो खाये ।
रक्त व धातु दोनो बढ़े नामर्दी मिट जाए।।
नित आंवला खावे प्रातः पीवे पानी।
कभी न मिले वैद्य से जाए न उसकी जवानी ||
जहाँ कहीं भी आपको काटाँ कोई लग जाय ।
दूधी पीस लगाइये काँटा बाहर आय ।
मिश्री कत्था तनिक सा चूसें मुंह में डाल ।
मुंह में छाले हों अगर दूर होय तत्काल ।।
पौदिना और इलायची लीजै दो-दो ग्राम ।
खायें उसे उबाल कर उल्टी से आराम ।।
छिलका ले इलायची दो या तीन ग्राम ।
सिर दर्द मुँह सूजन लगा होयेगा आराम।।
गाजर का रस पिजिये आवश्यकतानुसार |
सभी जगह उपलब्ध यह दूर करे अतिसार ।।
मूली की शाखों का रस ले निकाल सौ ग्राम ।
तीन बार दिन में पिये पथरी से आराम ।।
ठण्ड लगे जब आपको सर्दी से बेहाल |
नींबू मधु के साथ में अदरक पियें उबाल ।।
गौघृत में हिंगाष्टक चूरन रोटी से लगाके खाय ।
कमजोरी कमरदर्द तुरंत मिट जाय ।।
कुलथी की दाल पतली बनाकर खाय ।
इसको नियमित खाय तो पथरी बाहर आय ।।
अजवाइन को पीसिये गाढ़ा लेप लगाय |
चर्म रोग सब दूर हों तन कंचन बन जाय ।।
प्रातःकाल पानी पिएं चूंटचूंट कर आप |
बस दो तीन गिलास हर औषधि का बाप ।।
चिंतित होता क्यों भला देख बुढ़ापा रोय ।
चौलाई पालक खाओ यौवन स्थिर होय ।।
भोजन करके खाइए सौंफ गुड़ अजवान ।
पत्थर भी पच जायेगा जाने सकल जहान।।
ताजे तुलसी पत्र का पीजे रस दस ग्राम ।
पेट दर्द से पायँगे कुछ पल में आराम ।।
सदा नाक से सांस लो पियो न कॉफी चाय ।
पाचन शक्ति बिगाड़े भूख विदा हो जाय ।।
गुनगुने पानी के साथ अजवाइन 5 ग्राम का चूर्ण खाने
से बदहजमी खांसी पेट का तनाव टयूमर तिल्ली
कफ की खराबी और वायु की बहुत प्रकार की खराबियां
दूर होती हैं पेट के छोटे-बड़े कीड़े नष्ट हो जाते हैं
इन सब शिकायतों में आवश्यकता अनुसार
अजवाइन एक दो सप्ताह तक लें।
शहद आंवला जूस हो मिश्री सब दस ग्राम ।
बीस ग्राम घी साथ में यौवन स्थिर जान।।
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