भोजन के पौष्टिक पदार्थ


भोजन के पौष्टिक पदार्थ
दूध
क्षीरघृताभ्यासो रसायनानाम् श्रेष्ठतमः ।। 
आयुर्वेद के मतानुसार शरीर को परिपुष्ट और एक प्रकार से नया बना देने वाले रसायनो में दूध और घी सर्वश्रेष्ठ हैं। दूध में शरीर की क्षतिपूर्ति करके रस रक्तादि धातुओं को वृद्धि कर अंग-प्रत्यंग का विकास करने वाले तत्व प्रभूत मात्रा में होते हैं।
विश्ववन्द्य महात्मा गांधी ने आरोग्य की कुंजी' नामक पुस्तक में दूध के विषय में लिखा है कि - मैं शाकाहार का पक्षपाती हूँ। मगर अनुभव से मुझे यह स्वीकार करना पडा है कि दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ जैसे मक्खन, दही आदि के बिना मनुष्य का शरीर पूरी तरह टिक नहीं सकता मैं १९१७ में सख्त पेचिश का शिकार बना शरीर अस्थि-पंजर हो गया। मैंने हठपूर्वक दूध या छाछ लेने से इन्कार किया। शरीर किसी तरह से बँधता ही नहीं था ... आखिर जो भी हो बकरी का दूध तुरन्त आया और मैंने वह लिया लेते ही मुझ में नयी चेतना आयी शरीर में शक्ति आयी। मैं खाट पर से उठा। इस तरह से और ऐसे अनेक अनुभवों से मैं लाचार होकर दूध का पक्षपाती बना हूँ।।

| दूध वस्तुत: पूर्ण आहार है। जन्म से ही केवल माता का दूध पीकर बालक स्वस्थ रहकर उसका विकास होता है। यह दूध के पूर्ण आहार होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पर्याप्त मात्रा में केवल दूध लेकर मनुष्य आनन्द से पूरा जीवन बिता सकता है। केवल दूध पर निर्भर रहने के लिए उसकी मात्रा अधिक होनी चाहिए। थोडा भी खाना साथ लेने से दूध की मात्रा कम ही चल सकती है। युवा व्यक्ति यदि केवल दूध दिन में तीन सेर से कम लेवे तो उसका वजन घटने लगेगा, परन्त ही अन्न एक सेर दुध के साथ लेते रहने से शरीर का वजन और शक्ति
बनी रहेगी। दूध को आम के रस में मिला कर लेने से शरीर की उत्तम पटी 3 इसी प्रकार दही के साथ केले का प्रयोग भी शरीर का वजन बढ़ाने में द्वितीय है। केवल आम या केला से कुछ नहीं होता, जब कि दूध या दही अकेला ही पर्याप्त मात्रा में लेने पर वजन बढ़ सकता है।
दुध सदा ही स्वस्थ पशु का लेना चाहिए। बीमार पशु का दूध लेने से मनुष्य का रोगी हो जाना निश्चित है, क्योंकि अन्य आहारीय पदार्थों की अपेक्षा दूध में जीवाणु-पोषक शक्ति सर्वाधिक होती है। रोगी पशु के दूध में उसके रोग-कीटाणु अधिक सशक्त होते हैं इसलिए उससे जीवाणूजन्य रोग होने की अधिक संभावना रहती है। दूध से उत्पन्न होने वाले रोग का आरम्भ तत्काल होता है और दूध का सेवन बन्द करते ही एकदम रोग बन्द हो जाता है। | जिस गाय का बच्चा जीवित हो ऐसी स्वस्थ गाय का दूध अमृत समान होता है। स्वच्छ पात्र में दुहा हुआ धारोष्ण दूध यदि तुरन्त ही स्वच्छ वस्त्र से छानकर
पिया जाय तो वह सर्वोत्तम होता है। दुहने के बाद यदि १०-१५ मिनट भी दूध रखा रहे तो वह विकृत हो जाता है। दूध को एक उफान देकर गर्म कर लेने से उसके रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। अधिक देर आग पर रखने से भी दूध केउत्तम गुण क्षीण हो जाते है, और पचने में गरिष्ट भी हो जाता है। इसलिए दूध को एक उफान आने पर आग से उतार कर, शीतोष्ण करके पी लेना चाहिए। आजकल वैज्ञानिक पद्धति से डेअरीयों में ताजा दूध शुद्ध बोतलों में १०० सेण्टग्रेट तक उबाल कर और सेण्टग्रेट तक ठण्डा करके भरा जाता है इसे दूध का पाश्चुरीकरण कहते हैं। इस विधि से दूध जीवाणु रहित हो जाता है, और उसे सीधा बिना उबाले लिया जा सकता हैं। बाजार का दूध विश्वास योग्य नहीं होता और वह लाभ के स्थान पर हानि ही करता है। इसलिए किसी पूर्ण विश्वस्त ग्वाले या अच्छे डेअरी फार्म का ही दूध लेना चाहिए। वैसे सबसे अच्छा तो यह है कि अपने घर में ही एक गौ रक्खें।
दही :-
शरीर में दही की किया अच्छा प्रभाव डालती है, क्योंकि दही के रस से आंतों में रहने वाले हानिकर कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में भी दही को दीर्घ जीवन देने वाला माना गया है।
दही को मथकर उसमें से घी निकाल लेने के बाद जो मठ्ठा (छाछ) बचता है, उसको कुछ लोग फेंक दिया करते हैं या पशुओं को पिला देते हैं। ऐसा करना बडा अज्ञान है। घी निकाला हुआ मट्ठा और मक्खन निकाला हुआ दूध यदि एक सेर लिया जाय तो वह भी एक पाव असली दूध के बराबर ही पुष्टई करता है मंदाग्नि अर्थात कमजोर हाजमें वालों के लिये यह बहुत ही काम का होता है, क्योंकि पचने में काफी सुगम होता है। उसमें घी के अतिरिक्त शेष सभी तत्व रहते है। मट्ठा यहाँ तक की भावमिश्र ने इसकी तुलना अमृत से की है। तक्त देकर ठीक किये रोग फिर उत्पन्न नहीं होते लिखा है :
यथा सुराणाममृतं हिताय तथा नराणां भुवि तक्तमाहुः।। |दूध से बनने वाले पदार्थों में मक्खन बहुत हल्का होता है। उसका समूचा भाव आंतों में प्रचूषित हो जाता है। विशेषकर बच्चों के लिए मक्खन ही अधिक हितकारक होता है। दूध से ही पनीर में २० प्रतिशत प्रोभूजिन, २५ प्रतिशत स्नेह
और प्रतिशत लवण होता है। स्नेह की अधिकता से यह पचने में कठिन होता है, फिर भी जिन्हें पचता हो उनके लिए पनीर बहुत पौष्टिक खाद्य है

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