काजू और पोषण
काजू (Cashew)
एक शक्तिप्रद मेवा (nut) है इसकी तुलना में अन्य मेवाओं का ठहरना
कठिन है। काजू गिरी का विश्लेषण करने पर इनमें निम्नलिखित पदार्थ मिलते हैं
स्निग्ध पदार्थ (फैट्स) ४८ प्रतिशत शिम्बीतत्व
(प्रोटीने) २१ प्रतिशत शर्करावर्गीयतत्व (कार्बोहाइड्रेट्स) २२.३ प्रतिशत कैल्शियम
०.५ प्रतिशत पानी ५.९ प्रतिशत
खनिज पदार्थ १ प्रतिशत लौह .५ प्रतिशत
फास्फोरस .४ प्रतिशत कैलोरी मान ५९६ प्रति १००
ग्राम
काजू के फल में बहुत अधिक पोषणतत्व मिलते हैं।
इसमें प्रोटीन, फैट्स, कार्बोहाइड्रेट्स,
कैल्शियम, फास्फोरस और लोहा रहता है। इसके १०० ग्राम रस में
२६१.५ मि. ग्राम विटामिन सी तथा कुछ केसेटीन मिलती है।
काजू से भी सस्ता और गुणकारी मेवा अखरोट है।
अखरोट को तोडकर ताजा गिरी खायी जाती है यह बादाम से भी अधिक पौष्टिक है तथा काजू
से अधिक गुणकारी और सस्ती है। मूंगफली भी बहुत गुणकारी है।
मांस में स्वाभाविक ही काफी नमक होता है,
इसलिए मांसाहारी व्यक्तियों को अतिरिक्त नमक कम लगता है। परन्तु
शाकाहारी भोजन में लगभग आधा तोला नमक दाल, शाकों और आटा में
मिलाकर नित्य खाना चाहिए। नमक बिलकुल न खाने से कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते
हैं।
अन्य मिर्च-मसाले और
अचार-चटनी-मुरब्बा आदि स्वास्थ्य-पुष्टि की दृष्टि से बिलकुल आवश्यक नहीं। इनका
उपयोग केवल रूचि उत्पन्न करने (भोजन में स्वाद बढाने) के लिए किया जाता है। इन्हें
आवश्यकता होने पर कम मात्रा में ही खाना चाहिए, क्योंकि इनसे
उत्पन्न होनेवाली रूचि स्वाभाविक नहीं होती, और अन्तत: वह
हानिकारक होती हैं। बहत मिर्च मसाले और चाट-पकौडी (भजिए) खाने वाले कभी स्वस्थ
नहीं रह सकते।
विटामिन्स (जीवतिक्तियाँ) भोजन के साथ अल्प
मात्रा में विटामिन (जीवतिक्ति) नामक तत्त्वों का लेना हितकर है। दुर्भाग्यवश
हमारे देश में, आधुनिक शिक्षित लोगों के अत्याधिक प्रचार से आजकल
विटामिन्स खाने में अत्युत्साह पाया जाता है।
मांस में विटामिन्स
कम रहते हैं, इसलिए मांसाहारी व्यक्तियों को अलग से हरे
साग-सब्जी, फल आदि खाकर विटामिन्स की पूर्ति करना आवश्यक है।
केवल मांसाहार पर आश्रित रहनेवाले पश्चिमी देशों में आजकल इसी कारण शाकाहार को
भोजन में सम्मिलित करने पर जोर दिया जा रहा है। शाकाहार में ही हरी पत्ती फल अन्न
आदि हैं। । परन्तु हमारे देश में, जहाँ का भोजन ही शाकाहार प्रधान है,
वहाँ फलाहार के अधिक प्रचार की कोई अपेक्षा नहीं । शाकाहार में
विटामिन्स स्वयमेव ही। बहुतायत से विद्यमान रहते हैं, इस कारण अलग से लेने
की आवश्यकता नहीं।
भोजन के सहायक पदार्थमीठा
शरीर में उष्णता और शक्ति उत्पन्न करने के लिए
जितने प्रागोदीय या कार्बोहाईड्रेट्स की जरूरत होती है, वे हमें चावल,
गेहूँ, दाल और घी आदि से मिल जाते हैं। फिर भी मीठा भोजन
का इसलिये सहायक पदार्थ है कि उससे उत्पन्न उष्णता से पाचकाग्नि की वृध्दि होती
है। उचित मात्रा में मीठा खाना हितकर है, परन्तु आज कल शहरों
में जिस प्रकार अधिक मीठा खाया जाता है, वह स्वास्थ्य को
नष्ट करने वाला हानिकारक होता है।
दूध-मिठाई आदि में कुल मिलाकर अधिक-से-अधिक एक
छटांक मीठा प्रतिदिन खाना चाहिए। मीठे में सबसे उत्तम तो मधु (शहद) होता है।
परन्तु वह भी आजकल सबको शुद्ध नहीं मिलता। उसके बाद गुड उपयोगी है, उसमें
मिश्रित पीला पदार्थ विशेष लाभदायक होता है। चीनी (शक्कर) में वह नहीं होता,
इसलिए चीनी गुड के बराबर गुणकारी नहीं होती।
| ईख (गन्ने) से बने गुड की अपेक्षा ताड या खजूर का
गुड अधिक उपयोगी होता है, क्योंकि उसमें बहुत बड़ी मात्रा में ग्लूकोज
विद्यमान रहता है। बंगाल बिहार में ताड का गुड काफी बनता है। | मीठे के
स्थान पर विशेषकर पेयों में सेकरिन नामक जा पदार्थ दूकानदार प्रयोग करते हैं,
वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
खनिजद्रव्य खनिजद्रव्यों से शरीर की अस्थि,
रक्त आदि धातुयें बनने और पुष्ट होने में मदद मिलती है। अन्नादि के
पाचन एवं सात्मीकरण में भी खनिज द्रव्य सहायक
होते है। खनिजों में नमक प्रधान हैं। कुल मिलाकर
डेढ़ तोला खनिज दैनिक भोजन में होना चाहिए




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