फल
फल खाने से भी अपेक्षित विटामिन्स की पूर्ति होती
है। फलों में आँवला और कागजी नींबू सर्वश्रेष्ठ गुणदायी फल हैं। आम, अंगूर,
अनार, सेव, सन्तरा, मौसमी, अनन्नस
आदि फल स्वास्थ्यकर फल हैं। कच्चे खाने योग्य फलों में ककडी,
खीरा,
अमरूद उत्तम फल हैं। इनमें अमरूद सर्वाधिक उपयोगी है। उसको भारत का
सेव कहा जा सकता है। केला वैसे साधारण फल है, परन्तु दही के साथ
खाने पर लाभदायक है। कन्दों में प्याज बहुत बढिया कन्द है शक्करकन्द आलू आदि
निकृष्ट कन्द हैं।

श्री
बैद्यनाथ आयर्वेद भवन ने झाँसी लक्ष्मी व्यायाम मंदिर नामक संस्था में जो पौष्टिक
खाद्य का परीक्षण किया था, उसमें मूंगफली बहुत उपयोगी सिद्ध हुई । एक छटाँक
मूंग फल्लीदाना, एक छटांक अंकुरित चना, आधा छटाक गुड के साथ
अथवा तलकर नमकीन बनाकर नित्य नाश्ते में लेने से शक्तियुक्त, पौष्टिक
नाश्ता शरीर को मिलता है। नौजवान युवकों के लिए यह उत्तम पौष्टिक खुराक है। किस
आहार द्रव्य में कौन-कौन सी और कितनी विटामिनें रहती है इसका वर्णन पीछे तालिकाओं
में दिया गया है।
भोजन बनाना
वैसे तो
शरीर रूपी स्वयंचलित मशीन की यह विशेषता है कि इसे जो कुछ मिल जाता है, उससे ही
अपना काम चला लेती है। केवल बाजरा, जौ, या ज्वारमक्का इनकी
रोटी को चटनी के साथ खाकर अथवा नमक-सत्तू लेकर ही लाखों गरीब भारतीय स्वस्थ रहते
हैं और परिश्रम करते है परन्तु बुद्धिजीवी मनुष्य पौष्टिक तत्व रहित भोजन से केवल
पेट भर सकता है, पूर्ण स्वास्थ्य एवं दीर्घायु नहीं हो सकता ।
विशेषकर बुद्धिजीवि व्यक्तियों के लिए तो स्नेह-रहित भोजन एकदम व्यर्थ और अहितकर
है। सामान्यत: हरएक के भोजन में योग्य पौष्टिक तत्व रहना, स्वास्थ्योन्नति
की पहली शर्त है।
परन्तु
भोजन के पौष्टिक तत्वों का लाभ तभी हो सकता है जबकि भोजन को विधिपूर्वक बनाया जाय।
बढिया भोजन बनाना एक कला है। भोज्य पदार्थों के सदुपयोग-हेतु उसकी जानकारी आवश्यक
है।

भूसी के
साथ दाने के ऊपर का गुणकारी कण बँट जाने से ही गेहूँ का मैदा और मिल का पालिशदार
चावल खाने से कई रोग भी होते हैं। बेरी-बरी नामक रोग, पालिशदार चावल का
भात खाने वालों को बहुतायत से होता है।
धान को हाथ से कूटकर निकाले गये चावलों में सब
तत्व सुरक्षित रहते हैं। उसको अधिक मात्रा में कूट कर रक्खा नहीं जा सकता, नहीं तो
कीडा खा जाएगा। जब खाना होगा तभी कूटना पडेगा, इससे दैनिक व्यायाम
भी होगा और अन्न की बचत भी होगी। यह बात आटे के विषय में है। मशीन की चक्की से
पिसे बहुत महीन आटे की मुलायम रोटी स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं। गेहूँ का दलिया
कब्जियत में इसलिए लाभ करता है कि वह चोकरयुक्त होता है। रोटी भी हाथ की चक्की से
पिसे चोकरयुक्त आटे की ही खानी चाहिए।
भोजन
में मैदे का प्रयोग हानिकारक है। आजकल नाश्ते में जो मैदा की डबल रोटी और बिस्कुट
खाते हैं, वह स्वास्थ्यनाशक होता है। आगे चलकर उसके
पाचन-संस्थान पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है। आटे की (ब्रेड) और ताजी डबल रोटी बहुत
ठीक होती है। मैदा की अन्य वस्तुयें भी पाचन को खराब करती हैं। | सभी
खाद्य वस्तुओं को इस प्रकार पकाना चाहिए कि वे अधिक स्वास्थ्यकारक हों। आटे को
भिगों कर थोड़ा पानी डालकर तीन चार घण्टे रखने से उसमें स्वत: खमीर उठ आता है और
उसमें सोडा-बाई-कार्ब जैसा पाचक गुण बढ़ जाता है। ऐसे खमीर उठे आटे को खूब गूंद कर
पतले-पतले फलके (चपातियाँ) बनाकर पहले तवे पर सेकें फिर अँगारों पर खूब सेंक कर
फुला लिया जाय। यह ध्यान रहे कि तेज आँच से वह जले नहीं और कम आँच में कच्ची न रह
जाय। ऐसी रोटी अच्छी होती है।
तन्दूर की बनी रोटी सब से उत्तम पाचक होती हैं।
अंग्रेजी ढंग से बनी आटे की पावरोटी में भी यही गुण होता है। आजकल कुकर में जो
भोजन पकाया जाता है वह भाप में पकने के कारण बहुत स्वास्थ्यकर होता है, क्योंकि
उसमें खाद्य पदार्थ के सम्पूर्ण तत्व भोजन में सुरक्षित रहते है।
किसी भी खाद्य वस्तु
को पानी में पकाकर या उबालकर उसका पानी फेंक देना मूर्खतापूर्ण है। पालक, मेथी,
चंदनबथुआ, गाजर आदि पत्तियोंवाले शाकों को, उबाल कर
उनका पानी निचोड कर छौंकना, बहुत गलत है। उबले हुए उस पानी के साथ शाक के
विटामिन और खनिज तत्त्व सब निकल जाते हैं। सारहीन फोल बचता है उसको घी-तेल छौंक कर
साग के नाम से खाने से क्या लाभ ? इसी प्रकार लोग चावल पकाते हैं तो उसका
मांड फेंक देते हैं। उस मांड में ही चावल का सार तत्व निकल जाता है। दवा का काढा
फेंककर जड़ी बूटी खाना जैसा है वैसा ही। कोरा भात बचता है। इसलिए चावल को उतना ही
पानी डालकर पकाना चाहिए। कि वह भली-भाँति पक जाय और पानी भी न फेंकना पडे।
धिक
पकाने और उबालने से कोई चीज सुपच बन जाती है और कोई चीज उलटी दुष्पच एवं गुणहीन हो
जाती हैं। गेहूँ, दाल ज्यादा पकानेसे सुपाच्य होते है लेकिन दुध,
शाक (सब्जी) ज्यादा पकाने से वह निश्चित ही दुष्पाच्य और सत्वहीन होते है।
भोजन
में रूचि का बहुत महत्व है। उत्तम रीति से पकाया हुआ भोजन सुपाच्य के अतिरिक्त,
इतना स्वादिष्ट और दर्शनीय मोहक होता है कि उसके देखते ही मूहूँ का
स्वाद बढ़ता है साथ रूचि बढती है। वास्तविक रूचि तो निश्चित समय पर लगने वाली
कडाके की भूख से होती है। नकली रूचि अचार-चटनी से उत्पन्न होती है, किन्तु
अधिक प्रयोग हानिकारक होता है। कागजी नीबू ओर दही उत्तम, निर्दोष एवं
रूचिवर्द्धक होते है। लाभकारी भी होते हैं।
भोजन बनाने के लिए रसोई घर और भोजन बनाने-खाने के
सभी बर्तन बहुत साफ-सुथरे होने चाहिए।
दाल, भात, रोटी, साग, दूध,
दही, मीठा आदि सभी खाद्य वस्तुओं को सदा ढककर रखना
चाहिए जिससे मक्खी-मच्छर, चींटी, चूहा आदि उन्हें
दूषित न कर सकें। खुले भोजन में हवा के साथ उडने वाले धूलिकरण और रोगाणु मिल जाते
हैं। मक्खी विशेषकर खुली चीजों पर बैठकर असंख्य रोगों के कीटाणु खाद्य पदार्थों
में मिला देती है, जिससे अनेक घातक छूत के रोग फैलते हैं।
रसोई बनाने वाला तथा खाना परोसनेवाला साफ-सुथरा
शांत स्वभाववाला | रहना चाहिए। भोजन के श्रेष्ठत्व में रसोईए का
महत्व बिल्कुल कम नहीं होता | औरते यह काम बहुत अच्छी तरह से करती है।
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